Thursday, November 21, 2024
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HomeJharkhandझारखंड की राजनीति के पलटू चाचा हो गये हैं राधाकृष्ण किशोर!

झारखंड की राजनीति के पलटू चाचा हो गये हैं राधाकृष्ण किशोर!

Ranchi : वैसे तो राजनीति में पाला बदलने वाले नेताओं की फेहरिस्‍त काफी लंबी है, लेकिन पल्टीमार नेताओं की जमात में कुछ ऐसे भी हैं, जो झारखंड की राजनीति के पलटू चचा बने हुए हैं। हर बार चुनावी मौसम आते ही ये नेता पलट जाते हैं और टिकट की दौड़ में जो मिला, उसे पकड़ लेते हैं। ऐसे नेता कई बार तो विधायक भी बनने में कामयाब हो जाते हैं। झारखंड की राजनीति में एक  ऐसा ही नाम है, राधाकृष्‍ण किशोर। इसबार इन्होंने फिर से पाला बदला है और टिकट के लिये कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली है।

झारखंड गठन के बाद से ही पल्‍टीमार वाला रहा है इतिहास

अलग झारखंड राज्‍य के गठन के बाद से ही राधाकृष्ण किशोर का इतिहास पल्‍टीमार वाला रहा है। जब-जब चुनाव आया, तब-तब इन्होंने पाला बदला और जोड़-तोड़ की राजनीति कर विधायक बन गये। लेकिन, चुनाव संपन्‍न होने के बाद ये फिर से साइलेंट मोड में चले जाते हैं और सदविचारों के उपदेश मीडिया के माध्यम से देते रहते हैं। हालांकि, ये जिस भी पार्टी में रहे, वहां इन्हें तवज्जो नहीं के बराबर ही मिली।

जिस भी पार्टी में रहे, टिकट की लिस्‍ट से बाहर कर दिये गये

बेशक, झारखंड की राजनीति में राधाकृष्‍ण किशोर एक बड़ा नाम हैं। लेकिन ये जिस पार्टी में रहते हैं, टिकट बंटवारे के दौरान इनका नाम लिस्ट से बाहर कर दिया जाता है और मजबूरन नये ठौर की तलाश में निकल पड़ते हैं। इसबार इन्होंने आजसू पार्टी का दामन छोड़ कर कांग्रेस पार्टी का पल्लू पकड़ लिया है और टिकट के लिए कसरत कर रहे हैं। इन्‍होंने कांग्रेस की प्राथमिकता सदस्यता तो ले ली है, पर आगे इन्‍हें टिकट मिलेगा या नहीं, इसका पता नहीं है।

2005 से लगातार ऐसे पार्टी बदलते रहे हैं राधाकृष्ण किशोर

वर्ष 2005 में राधाकृष्ण किशोर कांग्रेस का दामन छोड़ कर जेडीयू में शामिल हो गये थे। उसके बाद 2009 में इन्होंने फिर से कांग्रेस में वापसी की। किसी तरह से वक्त गुजारा और कांग्रेस से संबंध बिगड़े, तो ये राजनीति के नाराज फूफा बने और वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली। उसके बाद 2019 का चुनाव आया, तो उन्‍हें आजसू पार्टी में अपना भविष्य दिखाई देने लगा। लेकिन, अक्‍टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही इन्‍हें आजसू पार्टी में अपना भविष्य नजर नहीं आने लगा। ऐसे में राधाकृष्ण किशोर को एक नये राजनीतिक प्लेटफॉर्म की जरूरत थी, तो उन्होंने फि‍र से अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस का तीसरी बार पल्लू पकड़ लिया।

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