Ranchi : प्रधानमंत्री मोदी के बयानों के राजनीतिक मायने हैं। चुनावी बुखार राजनीति पर चढ़ चुका है तो डेमोग्राफी का मुद्दा हॉट हो चला है। पीएम मोदी के बयान के बाद डेमोग्राफी का डमरू राज्य के विधानसभा चुनावों के लिये एक कारगर हथियार के रूप में बीजेपी ने पेटेंट करा लिया है तो मान लीजिये कि चुनाव की बिसात पर घुसपैठ और रोहिंग्या राजनीति के केन्द्र में रहेंगे। झारखंड में कांग्रेस के लिये मुस्लिम अल्पसंख्यक वोट बैंक हैं, तो जेएमएम के लिये आदिवासी और इसाइ वोट बैंक हैं। भाजपा यह जानती है कि किसी भी स्थिति में मुस्लिम वोट बैंक उसका नहीं है। झारखंड में संदर्भ में बंग्लादेशी घुसपैठ रोहिंग्या भी भाजपा को नापसंद करते रहे हैं। इस लिाहज से भाजपा इस बात को जानती है कि अगर आदिवासी मतदाताओं का मिजाज भाजपा की नीतियों को समझने में कामयाब हो जाता है तो झारखंड की सत्ता में उसकी हनकदार वापसी हो सकती है।
ऐसे में बुनियादी सवाल यह है कि संताल में डेमोग्राफी जैसे गंभीर मुद्दों की हकीकत क्या है? सवाल यह भी है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस नीत सरकार इसके लिये कहां तक जिम्मेवार है और भाजपा के लिये यह मुद्दा कितना मायने रखता है? सत्ता पक्ष डेमोग्राफी के मुद्दे को एक ओर जहां केन्द्र के पाले में डालने की कोशिश कर रहा है वहीं बीजेपी लगातार हमलावर है और कह रही है कि बंग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से आदिवासी बहन बेटियों के सम्मान के साथ खिलवाड़ हो रहा है और आदिवासियों के बेटियों से रोहिंग्या मुसलमान शादी कर उनकी जमीनें हड़प रहे हैं। इस बात में कहां तक सच्चाई है, इसकी जब हमने पड़ताल की तो कई तथ्य निकलकर सामने आये।
बीते दिनों मीडिया में प्रकाशित खबरों की मानें तो संताल के चार जिलों में लव जेहाद का बड़ा षड़यंत चल रहा है, जिसमें आदिवासियों की बेटियों के साथ रोहिंग्या मुसलमानों की निकाह की बात बताई गयी थी। पाकुड़, साहेबगंज, दुमका सहित संताल के कई जिले ऐसे हैं जहां डेमोग्राफी में बदलाव की बात निकलकर सामने आ रही है। इस मामले में केन्द्र सरकार पर हेमंत सरकार आरोप लगा चुकी है कि अन्तर्राष्ट्रीय बॉर्डर का जिम्मा उसके पास है, अगर डेमोग्राफी बदली है तो उसे एक्शन लेना चाहिये। यह मुद्दा राज्य सरकार के अधीन नहीं आता है।
बीजेपी नेताओं के हाल फिलहाल के बयानों से लगता है कि प्रदेश में वो कथित डेमोग्राफिक बदलाव को चुनावी मुद्दा बनाएगी। बीते दिनों संसद में गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने भी डेमोग्राफिक बदलाव का मुद्दा सदन में उठाया थी। उन्होंने कहा था कि राज्य में मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है । दुबे ने कहा था कि गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र में के करीब 267 बूथों पर मुसलमानों की आबादी 117 फीसदी गई है। झारखंड में 25 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां ये आबादी 123 प्रतिशत आबादी बढ़ी है।
दरअसल, हाल के लोकसभा चुनाव में झारखंड में बीजेपी की सीटें और वोट शेयर दोनों ही कम हुए हैं। साल 2019 में बीजेपी को 11 सीटें मिली थी तो इस बार 9 सीटें आई। बात अगर वोट फीसदी की करें तो पाएंगे कि साल 2019 में बीजेपी के खाते में 51.6 फीसदी वोट आए थे तो साल 2024 में 44.60 फीसदी वोट मिले। इस बीच इंडिया अलायंस में कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा का वोट फीसद बढ़ा है। 2019 के मुकाबले कांग्रेस का वोट फीसद 15.63 से 19.19 फीसदी हो गया, वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा का वोट फीसद भी इस बार 11.51 से बढ़कर 14.60 फीसदी तक पहुंच गया।
आंकड़े की अकुलाहट बता रही है कि बीजेपी की चिंता डेमोग्राफी को लेकर जायज है लेकिन यह भी सच है कि बीजेपी की सरकार जब राज्य में थी तो उसने राज्य स्तर पर क्या क्या कदम उठाये। अगर यह मुद्दा संवदेनशील है तो केन्द्र सरकार कदम क्यों नहीं उठाती है। गौरतलब है कि डेमोग्राफी के मसले पर इंडी गठबंधन और एनडीए फोल्डर के दल एक दूसरे पर गेंद फेंक रहे हैं लेकिन इस मुद्दे की तह में जाने को कोई तैयार नहीं है। न तो केन्द्र सरकार की संजीदगी दिखाई दे रही है और न ही राज्य सरकार ने ऐसा कोई प्रस्ताव केन्द्र को बनाकर अब तक भेजा है जिससे आदिवासी बहन बेटियों के साथ हो रहे खिलवाड़ को रोका जा सके।
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