Wednesday, December 18, 2024
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अब सूरज के रहस्यों का भी पता लगा सकेगा ISRO, जानिये कैसे

Khabarmantralive : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 5 दिसंबर 2024 को अपने ऐतिहासिक प्रोबा-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च कर लिया है। यह लॉन्च श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से PSLV-XL रॉकेट के जरिए किया गया है, और मात्र 26 मिनट की उड़ान में रॉकेट ने सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया। मिली जानकारी के अनुसार यह मिशन सूरज के कोरोना की गहरी स्टडी करने के लिए है, और इसमें दो सैटेलाइट्स को एक साथ भेजा गया है।

इस मिशन में PSLV-C59 रॉकेट को लॉन्च किया गया, जो इस रॉकेट की 61वीं उड़ान थी। यह रॉकेट 145.99 फीट ऊंचा है और इसका वजन 320 टन है। यह रॉकेट प्रोबा-3 सैटेलाइट्स को 600 x 60,530 किलोमीटर की अंडाकार ऑर्बिट में स्थापित करेगा। प्रोबा-3 का उद्देश्य सूरज के कोरोना का अध्ययन करना है, और इसके लिए दो अलग-अलग सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए हैं – कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट और ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट

प्रोबा-3 सैटेलाइट्स की भूमिका

कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (310 किलोग्राम वजनी): यह सैटेलाइट सूरज की तरफ मुंह करके खड़ा होगा और इसके जरिए लेजर और विजुअल बेस्ड टारगेट डिसाइड किए जाएंगे। इसमें ASPIICS (एसोसिएशन ऑफ स्पेसक्राफ्ट फॉर पोलैरीमेट्रिक और इमेंजिंग इन्वेस्टिंगेशन ऑफ कोरोना ऑफ द सन) और 3DEES (3डी इनरजेटिक इलेक्ट्रॉन स्पेक्ट्रोमीटर) जैसे महत्वपूर्ण उपकरण होंगे। यह सूरज के बाहरी और अंदरूनी कोरोना के बीच के गैप की स्टडी करेगा।

ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट (240 किलोग्राम वजनी): यह सैटेलाइट कोरोनाग्राफ के पीछे रहेगा और इसका मुख्य कार्य डिजिटल एब्सोल्यूट रेडियोमीटर साइंस एक्सपेरीमेंट इंस्ट्रूमेंट (DARA) का उपयोग करते हुए कोरोना से मिलने वाले डेटा की स्टडी करना है।

सूरज के कोरोना की गहरी स्टडी

प्रोबा-3 मिशन का लक्ष्य सूरज के कोरोना यानी सूरज के बाहरी हिस्से की गहरी स्टडी करना है। दोनों सैटेलाइट्स 150 मीटर की दूरी पर एक लाइन में घूमते हुए सूरज के कोरोना की अध्ययन करेंगे। इन सैटेलाइट्स के बीच की इस दूरी और उनकी गति सूरज के कोरोना के रहस्यों को उजागर करने में मदद करेगी।

यह मिशन न केवल ISRO के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह सूरज के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा। प्रोबा-3 के माध्यम से प्राप्त जानकारी वैज्ञानिकों को सूरज की गतिविधियों और उसके प्रभावों को बेहतर समझने में मदद करेगी, जो पृथ्वी और हमारे सौरमंडल के लिए महत्वपूर्ण है।

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