Wednesday, April 2, 2025
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कोल्हान : यहां पलटीमार नेताओं की किस्मत चमकी है…!

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KhabarMantraLive : हक मांगना अगर बगावत है, तो हम बागी हैं…! इतिहास के झरोंखों में कोल्हान अंग्रेजों के दौर से बागियों को गढ़ रहा है और आज भी राजनीतिक हलकों में उसकी निरंतरता बनी हुई है। लड़बो… तईहे जीतबो.. की नीतियों की बात करने वाला कोल्हान वक्त के थपेड़ों के साथ हवाओं के रूख के साथ चलता है और ये ही यहां की राजनीतिक पहचान है। राजनीति में कोल्हान के कई कलंदर हैं जो कभी किसी क्षेत्रीय दल के पिछलग्गू हुआ करते थे वहीं नेता अब बागी तेवर अपना कर राज्य के नीति निर्धारकों की कुर्सी पर जा पहुंचे। झारखंड विधानसभा की रणभेरी बज चुकी है नामांकन का दौर शुरू हो गया है, टिकटों के लिये नेताओं की लंबी कतार लगी हुई है और राजनीति दल का शीर्ष नेतृत्व परेशान है कि किसे टिकट दें और किससे किनारा करें। जिन्हें टिकट नहीं मिलने की आशंका है, वह दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं और जो कन्फर्म हैं वह रणनीति बना रहे हैं। वहीं कोल्हान क्षेत्र के कई कलंदर हैं जो सिकंदर बनने के लिये दल बदलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं अथवा कर चुके हैं। उनमें से चम्पाई सोरेन का नाम वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ताजातरीन है और उनके ही कंधे पर कोल्हान में कायापलट की जिम्मेदारी है क्योंकि बीजेपी कोल्हान में साफ है और उसे हाफ तक लाने को कोशिश की जा रही है।

2000 में अर्जुन मुंडा हुए थे बागी..

बीजेपी के नेता और झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा का हिस्सा हुआ करते थे। साल 2000 में उन्होंने पार्टी को बाय बाय कर दिया और वह बीजेपी में शामिल हो गये। अर्जुन मुंडा 27 साल की उम्र में पहली बार खरसावां सीट से जेएमएम की टिकट पर विधायक बने। वह बीजेपी की टिकट पर 2009 और 2019 में सांसद भी चुने गये। जिस वक्त बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए राज्य में डोमिसाईल की नीति लागू की थी और पूरा प्रदेश जलने लगा था उस वक्त अर्जुन मुंडा को बाबूलाल मरांडी की जगह मुख्यमंत्री बनाया गया। उस दौर में अर्जुन मुंडा को बीजेपी के मैनेजर के रूप में देखा जाता था क्योंकि उनका राजनीतिक मैनेजमेंट जबर्दस्त था। इसी वजह से खूंटी से 2019 के चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद उन्हें केन्द्र में जनजातीय कल्याण एवं कृषि मंत्री बनाया गया। और इस तरह झामुमो का एक बागी नेता का कद बड़ा होता गया लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार यह बता गयी कि कद कितना भी बड़ा हो जाये, अगर जनादेश साथ नहीं है तो राजनीति में आप फेल्योर हैं।

शैलेन्द्र महतो जिन्होंने टाटा के रूसी मोदी को दी शिकस्त

शैलेन्द्र महतो किसी दौर में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता हुआ करते थे। लेकिन 1996 में वह अपने परिवार सहित बीजेपी में शामिल हो गये। उन्होंने 1998 के चुनाव में टाटा स्टील के एमडी रह चुके रूसी मोदी को 96 हजार वोटों से हराकर शिकस्त दी थी। वहीं सालभर बाद 1999 में हुए मध्यावधि चुनावों में उनकी पत्नी आभा महतो ने कांग्रेस के घनश्याम महतो को 1 लाख 20 हजार मतों से जीत दर्ज की। वह अपने पति शैलेन्द्र महतो की तरह दो बार बीजेपी से सांसद रहीं।

विद्युतवरण महतो ने लगार्ठ हैट्रिक

विद्युतवरण महतो कभी जेएमएम के विधायक हुआ करते थे। उन्होंने उसी दौरान बीजेपी का दामन थामा । बतौर सांसद उन्होंने हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया।

चम्पाई सोरेन ऐसे आये बीजेपी में..!

चम्पाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। गुरूजी के परिवार से रिश्तेदारी के साथ साथ नजदीकी संबंध भी रहे हैं। हेमंत सोरेन की जेल यात्रा के बाद इंडिया गंठबंधन के नेता बने और उन्हें मुख्यमंत्री की कुसी नसीब हुए। लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन की जेल से वापसी हुई उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद उन्हें लगा कि पार्टी में अब सम्मान नहीं रह गया है और ऐसे मौके का फायदा बीजेपी ने भांप लिया और वह बीजेपी में शामिल हो गये। अपने दर्द का बयान उन्होंने सोसल मीडिया पर भी किया था। बीजेपी इन्हीं के कंधों पर कोल्हान में अपनी किस्मत लिखने को बेताब दिखाई दे रही है और ऐसा माना जा रहा है कि चम्पाई की फिरकी से जेएमएम कांग्रेस के सियासी प्यादे सब धराशाई हो जायेंगे। हालांकि आसार कम नजर आते हैं फिर भी कोल्हान में डूबती बीजेपी चम्पाई में उम्मीद की पतवार देख रही है।

कोल्हान के शेर , संथाल में सब के सब ढेर..!

इन तमाम बागी नेताओं की हद सिर्फ कोल्हान तक ही सीमित रही है। संथाल में इनका कोई वर्चस्व दिखाई नहीं देता है। बेशक चम्पाई सरीखे नेता जेएमएम के स्थापना काल से जुड़े रहे हों लेकिन संथाल में अब तक उनकी कोई खास पहचान नहीं रही है। अर्जुन मुंडा का भी यही हाल है। वह मुख्यमंत्री रहते हुए भी संथाल से नहीं जुड़ पाये। बाकी बचे शैलेन्द्र महतो और विद्युतवरण महतो। इनकी पहचान ज्यादातर कोल्हान में ही है। इसलिये बीजेपी यह सोच रही है कि कोल्हान के शेर संथाल में सफल होंगे तो यह उसके लिये आत्मघाती भी हो सकता है।

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