KhabarMantraLive : सुबह-सुबह लुभावन मिया के दरवाजे की कुंडी किसी ने खटखटाई…! मियां…. बाहर निकलिये…! नेता जी आये हैं…! अलसाते हुए..मियां- आ रहे हैं…! (बड़बड़ाते हुए) साला.. लेना देना कुछ नहीं है… वोटवा मांगने भोरे-भोर चला आता है…! दरवाजा खोला तो रशिकलाल कुर्ता पायजामा टोपी पहने दिखाई दिये…! अरे रशिक भाई…तुम..? पगला गये हो का…? (अन्दर बुलाकर खटिया पर बिठाता है) रशिकलाल- नहीं मियां.. चुनाव लड़ रहे हैं… ! पार्टी से बहुत बोले टिकट दे दो…. लेकिन प्रभारी सब बोकराद बना हुआ था, सो हम निर्दलीय पर्चा भर दिये…! अब बोल रहा बैइठ जाओ…! मियां- अबे तुमको वोट कौन देगा? पहिले तुम कंगला था और मुख्यमंत्री का पीए बनकर आंय-बांय पैइसा कमाया और बिल्डिंग ठोक लिया… अब चुनाव भी लड़ेगा..? रशिकलाल- मियां ..पार्टी में भौकाली बनाने के लिये एइसा करना पड़ता है…! तुमको राजनीति तो समझ में आता नहीं है…! प्रदीपवा को देखो… क्या कमाल का राजनीति किया है…! उसका जीजा फिल्डिंग किया.. और एगो प्रदेश का मुख्यमंत्री के साथ डिनर पर सब सेटल हो गया…! उसका कौनो जनाधार था क्या?… विपक्ष वाला हमको फंड दिया है… तो चुनाव में अपना पार्टी का कैंडिडेट के खिलाफ खड़ हो गये हैं…। मियां- अबे प्रदीपवा का तो राजनीति में जीजा उंचा पद पर था तो सेटिंग कर दिया… पैइसा लेकर नाम वापस ले लिया…! लेकिन तुमरा कौन रिश्तेदार नेता है… जो सेटिंग कर देगा….? रशिकलाल- हमरा फूफा बंडा समाज का अध्यक्ष है… और चचा विधायक हैं… काहे सेटिंग नहीं करेगा..? मियां- अरे यार… माल आधा-आधा बांटोगे तो हम भी अपना मौसा से बात करेंगे… ! उसका पंहोच बहुत उपर तक है…! रशिकलाल- हम तैयार हैं… करवाओ…!
(मौसा से मीटिंग के बाद) – का करें मियां… बड़ा उलझन में हैं… प्रदीपवा… जैसा कोई हमरो जीजा होता… तो गिंजन होने से बच जाते…! तुमरा मौसा भी बेकार ही निकला..! ( रशिकलाल को 15 वोट ही मिले और पार्टी से भी बेदखल कर दिया गया)
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