Ranchi: झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्यवाही में स्थापित नियमों का पालन होना चाहिये। साथ ही अपराधी के खिलाफ किसी प्रकार के सबूत भी साबित होने चाहिये। कार्यवाही उन नियमों के अनुसार संचालित की जानी चाहिये, जिनके द्वारा विभागीय कार्यवाही संचालित होती है। हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की एकल पीठ ने सेवा बर्खास्तगी से जुड़े एक मामले की सुनवाई की दौरान ये बातें कही।
बगोदर के तत्कालीन BEEO की बर्खास्तगी का मामला
यह मामला बगोदर प्रखंड के तत्कालीन BEEO (प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी) जगदीश पासवान की बर्खास्तगी से जुड़ा है। दरअसल, उनके खिलाफ 4 लाख 36 हजार रुपये की अनियमितता का आरोप लगा था। विभागीय जांच में उन्हें दोषी पाया गया, जिसके बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद जगदीश पासवान ने उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही और बर्खास्तगी के आदेश को झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने दो रिट याचिकायें दाखिल की थी, जिसमें पेंशन देने की मांग से जुड़ी याचिका भी शामिल थी।
विभागीय जांच में स्पष्ट ही नहीं कि आरोप कैसे साबित हुये
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के बारे में विभागीय जांच रिपोर्ट, जिसमें उनके खिलाफ धन के कुप्रबंधन का आरोप लगा कर उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, उसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उनके खिलाफ लगाये गये आरोप कैसे साबित हुये? हाईकोर्ट की एकल पीठ ने आगे कहा कि एक भी गवाह की जांच नहीं की गयी।
याचिकाकर्ता के वकील का तर्क- विभागीय कार्यवाही त्रुटिपूर्ण
याचिकाकर्ता के वकील की ओर से भी तर्क दिया गया कि केवल दस्तावेज के बिनाह पर याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को साबित कर दिया गया। आरोपों को स्थापित करने के लिये गवाही भी जरूरी थी। विभागीय कार्यवाही शुरू से ही कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण थी, क्योंकि वह सिविल सेवा नियम, 1930 के तहत संचालित की गई थी, जिसे झारखंड सरकारी कर्मचारी नियम, 2016 द्वारा निरस्त और प्रतिस्थापित किया गया था। वहीं राज्य सरकार के वकील ने कहा कि विभागीय जांच कर रहे अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को सही पाया था। साथ ही याचिकाकर्ता को दूसरा कारण बताओ नोटिस देकर जवाब देने का पर्याप्त अवसर दिया गया था।
Read More : चुनावी रण में दौड़ेंगी 18 हजार हाइटेक गाड़ियां, GPS ट्रैकिंग सिस्टम से रखी जाएगी नजर
Read More : बारातियों से भरी बस खाई में गिरी, कई लोग घायल