Wednesday, March 19, 2025
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कल्‍पना सोरेन ने ‘कल्‍याण’ शब्‍द की जगह ‘अधिकार’ नाम रखने की मांग की

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Ranchi: झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में मंगलवार को महिला, बाल विकास और एसटी एससी अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के बजट पर चर्चा हुई। इस दौरान गांडेय विधायक कल्पना सोरेन ने कहा कि जब भी मैं राज्‍य या देश की महिलाओं को समझने का प्रयास करती हूं, तो बहुत ही असंतुलित तस्‍वीर सामने आती है। एक तस्‍वीर यह है कि देश के सर्वोच्‍च राष्‍ट्रपति पद को द्रौपदी मुर्मू सुशोभित कर रही हैं। वहीं, देश में प्रधानमंत्री के रूप में भी महिलाओं ने अपनी सेवाएं दी हैं। केंद्र सरकार या राज्‍य सरकार हो, मुख्‍यमंत्री से लेकर पदाधिकारी के रूप में महिलाएं अपनी सेवाएं दे रही हैं। कल्‍पना चावला, सुनीता विलियम्‍स ने अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। हिमालय जैसे सबसे ऊंचे पर्वत को संतोष यादव जैसी महिला ने अपने कदमों से कई बार नापा है। ये तस्वीर हमें गौरवान्वित करती है, पर दूसरी तस्‍वीर हमें काफी शर्मसार करती है।

आज 2 वर्ष की बच्‍ची से लेकर 90 वर्ष की वृद्धा में असुरक्षा के भाव

कल्‍पना ने कहा कि आज 2 वर्ष की बच्‍ची से लेकर 90 वर्ष की वृद्धा में असुरक्षा के भाव में जीने को विवश है। आज देश में 94 फीसदी से ज्‍यादा महिलाएं अपने निर्णय भी स्‍वयं नहीं ले पाती हैं। कहीं न कहीं अपने परिवार या पुरुष साथी के निर्णय को स्‍वीकार करना उनकी मजबूरी रहती है। आज कल्याण विभाग के बारे में हम बात कर रहे हैं। इस विभाग का जिम्‍मा है, महिला, बच्‍चे, अल्‍पसंख्‍यक, पिछड़ा और आदिवासी वर्ग की जिम्मेदारी लेना। ये शब्‍द ‘कल्‍याण’ से ही समाज में अलग-अलग वर्गों की स्थिति क्‍या है, इसका पता चल जाता है। उन्‍होंने कहा कि यह मेरी निजी राय है कि क्‍यों नहीं, इस विभाग में ‘कल्‍याण’ शब्‍द को बदल कर ‘अधिकार’ का नाम दिया जाये। क्‍योंकि, ये वर्षों से अधिकार की लड़ाई है। ये कल्‍याण शब्‍द एक शासक और एक दास का एहसास कराता दिलाता है। लेकिन, लोकतंत्र में शासक और दास की कोई जगह नहीं है।

बहन-बेटियों को सुरक्षित वातावरण में शिक्षा और रोजगार चाहिये

कल्‍पना सोरेन ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां बाबा साहेब जैसे दूरदृष्‍टा लोगों के कारण आजादी के बाद से ही महिलाओं को पुरुषों के बराबर वोट डालने का अधिकार मिला। लेकिन, आज महिलाओं की स्थिति काफी भयावह है। आखिर विभिन्‍न विभागों में महिलाओं को आरक्षण देने की बात क्‍यों उठ रही है? आज महिलाएं अपने ही जीवन को विवश तरीके से जीने के लिए मजबूर क्‍यों हैं? आखिर महिलाओं को कलम से दूर क्‍यों रखा जा रहा है? आखिर गर्भवती महिलाओं के भ्रूण में पल रही बच्चियों की भ्रूण में ही मौत क्‍यों हो जाती है? ये सिर्फ झारखंड का ही नहीं, भारत के साथ-साथ पूरे विश्‍व की महिलाओं का विषय है। इसलिए, हम बहन-बेटियों को आरक्षण नहीं, बल्कि एक सुरक्षित वातावरण में शिक्षा और रोजगार चाहिये, बाकी हम सब कुछ करने में सक्षम हैं।

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