Ranchi : बीजेपी की पूर्णिमा के खिलाफ शिवशंकर तांडव कर रहे हैं तो ईचागढ़ से मलखान सिंह ने ताल ठोंक दी है। धनवार से राय पहले ही अलख निरंजन बोल चुके हैं… तो शंभु चौधरी और विकास सिंह ने पश्चिमी जमशेदपुर से निर्दलीय पर्चा दाखिल कर जता दिया है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की हकमारी करेगी तो गठबंधन उनके ठेंगे पर है। पूजा का आयोजन करते-करते मुनचुन राय भी सीपी सिंह के सामने खड़े हो गये हैं। कांके के कमलेश रूसे तो मान गये, लेकिन मुनचुन मानने को तैयार नहीं। संदीप ने हथियार डाल दिये लेकिन गुमला के मिसिर जी अपनी धुन में ताबड़तोड़ कैंपेनिंग कर रहे हैं। बीजेपी कांग्रेस और जेएमएम को चुनौती देने निकली थी और साथ आजसू और जेडीयू ने भी दिया था लेकिन एनडीए की नीति कार्यकर्ताओं को खतावार लगी और बागियों की टोली ने मोर्चा खोल दिया। अब हिमंत और शिवराज की जान हलक में अटकी है और सोच रहे हैं कि रूठों को कैसे मनायें? धनबाद के शेखर अग्रवाल कांग्रेस में जाते-जाते रह गये। कमलेश को मनाने के लिये हेलिकॉप्टर में ले जाना पड़ा, तो रविन्द्र राय को पद देकर खामोश कर दिया लेकिन जम्बो जेट पर सवार एनडीए के बाकी के 15 बागियों को कैसे समझायें? वक्त बचा नहीं, चुनौती मुंह बाये खड़ी है… सत्ता में वापसी की उम्मीदें धूमिल हो रही हैं। हिमंत-शिवराज परेशान हैं कि क्या करें? दीपक प्रकाश भी मिसिर जी को मनाने में फेल हो गये, निशिकांत भी निरंजन की आंखों का अंजन नहीं चुरा पाये तो आप ही बताईये बीजेपी के कूटनीतिज्ञों की जोड़ी क्या करें।
मोदी-शाह ने बड़ी उम्मीद से इन्हें भेजा था। नड्डा की सोच के नौ नतीजे होने वाले हैं। बागियों की फौज मैदान में एनडीए के नेताओं को ही ललकार रही है। यह हाल सिर्फ बीजेपी की सीटों का नहीं है। एनडीए फोल्डर में आने वाले दलों पर भी बीजेपी की बागी उम्मीदवारों ने हल्ला बोल दिया है। हटिया से नवीन के खिलाफ भरत काशी ने हुंकार भरी है तो जुगसलाई से विमल बैठा कुंडली मारकर बैठ गये हैं। चतरा से अशोक गहलोत ताल ठोंक रहे हैं तो हुसैनाबाद से विनोद सिंह दल बल के साथ बीजेपी के हो चुके कमलेश को कह रहे हैं, देखें किसमें कितना है दम…? हिमंता-शिवराज की जोड़ी आउट ऑफ कंट्रोल होती बीजेपी के कंट्रोल मैनेजमेंट में लाचार दिखाई दे रहे हैं। मुंडा को पत्नी मीरा मुंडा की कैंपेनिंग करनी है, मरांडी को धनवार से वापसी करनी है। तो अपना दर्द किसे बतायें? यह हिमंता को समझ नहीं आ रहा है! राय साहब के अनुभव पुराने जरूर हों लेकिन मौजूद मुसीबतों को समझ नहीं पा रहे हैं…! निशिकांत भी संथाल में कोना पकड़ कर बैठ गये हैं…! निशिकांत-दीपक प्रकाश एक-एक को मनाने में फेल हो गये… आगे सफल होने की क्या गांरटी है…? इसी सोच में डूबे हिमंता सोच रहे होंगे असम में ही अच्छे थे! काहे झारखंड की राजनीति में एंट्री की। रायता फैल चुका है तो समेटना तो होगा ही। तीन दिन बाकी हैं..! दोनों चरणों के नाम वापस होने हैं…! क्या रूसल मेहरारू को हिमंता मना पायेंगे…?
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