Thursday, November 21, 2024
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HEMANT ने दी पटखनी, एक तीर से कई शिकार…!

Ranchi : मौजूदा झारखंड विधानसभा चुनावों में झारखंड की राजनीति का एक अलग मिजाज देखने को मिल रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा हर मोर्चे पर बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी को पटखनी देती दिखाई दे रही है। हालांकि कांग्रेस उसके ही फोल्डर की पार्टी है फिर भी हेमंत ने कांग्रेस के इरादों पर पानी फेर कर रख दिया है लेकिन जिस तरीके से बीजेपी में हेमंत सोरेन ने सेंधमारी कर उसके कई राजनीतिक धुरंधरों को अपनी पार्टी में शामिल कर उसीके प्यादों के कंधों पर बंदूक रखकर निशाना बनाया है, उससे बीजेपी के अन्दर छटपटाहट देखी जा रही है। बेशक हिमंता और शिवराज सहित कई राष्ट्रीय क्षितिज के नेता झारखंड की क्षेत्रीय राजनीति में कुलांचे मार रहे हों लेकिन हेमंत की कूटनीतिक चाल के आगे सब बौने दिखाई दे रहे हैं। हाल ही संथाल क्षेत्र की लुईस मरांडी बीते 24 सालों के बीजेपी के कालखंड को बाय-बाय करके जेएमएम में शामिल हो गयीं जबकि कुणाल षाड़ंगी,घाटशिला के पूर्व विधायक लक्ष्मण टूडू, गणेश महली, बास्को बेसरा, बारी मूर्मु सहित कई नेता जेएमएम में शामिल हो गये और बीजेपी अपने ही नेताओं को जाते हुए देखती रह गयी।

हेमंत ने बीजेपी को बेचैन कर दिया..!

चुनाव के पहले जहां बीजेपी भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हेमंत सरकार पर आक्रामक थी वहीं बीजेपी अब अपने किले कको बचाने की कोशिश में जुटी हुई है। कई नेताओं का बीजेपी को अलविदा कहना उसकी नीतियों पर उंगली उठा रहा है। दूसरे दलों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी इन दिनों खुद परिवारवाद के आरोपों से घिरी हुई है। बताया जा रहा है कि पूर्वी सिंहभूम सीट से तीन नामों का प्रस्ताव आया था जिसमें शिव शंकर, अमरप्रीत काले और अभय सिंह लेकिन बीजेपी नेताओं ने पूर्व सीएम रघुवर की पुत्रवधु के नाम पर मुहर लगाई। इससे साफ जाहिर होता है कि बीजेपी में भी परिवारवाद का घुन लग चुका है जो उसे आने वाले दिनों में परेशान करेगा। साथ ही अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से टिकट दिया गया जबकि तीन बार की विधायक मेनका सरदार को किनारे लगा दिया गया। लम्बे समय से बाघमारा में राजनीति करने वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं को टिकट न देकर ढुल्लू महतो के भाई को टिकट, हुसैनाबाद से असली दावेदारों को दरकिनार कर कमलेश सिंह को टिकट दे दिया गया। केदार हजारा भी नाराज होकर जेएमएम चले गए। ऐसे कई उदाहरण सामने आये हैं जब बीजेपी ने पार्टी के मुख्यधारा से जुड़े लोगों को टिकट देने की बजाय रिश्ते और फरिश्तों को तवज्जो दी है। जाहिर है कि बीजेपी में नेताओं का बढ़ा आक्रोश उसकी ही हार की जमीन तैयार करने में जुट गया है।

कांग्रेस ने भी सरेंडर किया

जेएमएम के कौटिल्य शास्त्र की कूटनीतियों के आगे कांग्रेस पार्टी भी अपने हथियार डाल चुकी है। विधानसभा चुनावों में जब-जब कांग्रेस ने दिल मांगे मोर की भावनाओं से हेमंत को अवगत कराने की कोशिश की तब-तब जेएमएम के नेताओं ने उसे ठेंगा दिखाते हुए हेमंत से ही हिम्मत है का पाठ पढ़ा दिया। सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस की जिद भी काम नहीं आई तो रोटेशन सीएम की बात कह कर कांग्रेस ने अपनी ही किरकिरी करवा ली। हेमंत सोरेन की पार्टी हर बार कांग्रेस के उसकी औकात बताती रही और कांग्रेस जी हुजूर की मुद्रा में हाथ जोड़े जेएमएम के सामने खड़ी रही। उसकी वजह भी साफ है कि जिस तरह से कांग्रेस के नेता राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस की डूबती नईया को सिर्फ जेएमएम के भरोसे ही पार लगाया जा सकता है। राज्य की मुस्लिम मतदाता पहले जहां बीजेपी का विकल्प कांग्रेस को मानती थी अब वहीं मुस्लिम मतदाता जेएमएम को मानने में लगी है  साथ ही आदिवासी मतदाताओं और क्रिस्चन वोट भी जेएमएम के पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीण वोटरों पर जेएमएम की पकड़ भी काफी मजबूत है। ऐसे में कांग्रेस का कमजोर पड़ना भी लाजिमी है जिसे कांग्रेस अच्छी तरह से जानती भी और समझती भी है। जेएमएम ने मंत्रिमंडल में बदलाव किया और कांग्रेस फेाल्डर के बादल पत्रलेख को किनारे लगा दिया उस वक्त भी कांग्रेस के मुंह से बोल नहीं फूटा। ऐसी बातों से आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि कांग्रेस इनदिनों राज्य में पूरी तरह से हेमंत के सामने बैकफूट पर है।

आरजेडी भी प्रार्थना की मुद्रा में

प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल के बारे में भी अब जान लीजिये। वर्तमान समय में आरजेडी से एक विधायक हैं सत्यानंद भोक्ता। प्रदेश आरजेडी 22 सीटें मांग रही थी, लेकिन जेएमएम ने उसे भी मना कर दिया। उसका साफ कहना था कि राज्य में उसका प्रतिनिधित्व एक सीट पर है और 22 सीटों की मांग तर्कसंगत नहीं है। कई रांउड की मीटिंग भी आरजेडी ने की लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। आखिरकार आरजेडी को भी जेएमएम के ढीट इरादों के सामने नतमस्तक होना पड़ा। हेमंत सोरेन वाम दलों के प्रति थोड़े साफ्ट जरूर रहे क्योंकि वाम दलों की मांग छोटी और तर्कसंगत थी।

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