Jamshedpur : पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने झारखंड विधानसभा 2024 चुनाव की समीक्षा की है। समीक्षा कर उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर पोस्ट किया है। शैलेंद्र महतो ने कहा कि ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में नारा दिया कि “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे”, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जोगी आदित्यनाथ ने कहा कि “बटेंगे तो कटेंगे”। इन महानुभावों के विचारों से मुझे लगा कि यह किसी दार्शनिक (philosopher) के नारे हो सकते हैं? मैंने इन नारों के पीछे चिंतन-मनन शुरू किया, खोजबीन किया लेकिन पता चला कि यह नारा किसी दार्शनिक का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी का स्वरचित नारा है। उल्लेखनीय है कि दार्शनिक तो विद्वान होते हैं, उनके कहे हुये बातों को दुनिया अनुसरण करती है। अब सवाल है कि नरेंद्र मोदी और जोगी से जनता जानना चाहती है कि आखिर यह नारा किसके लिए है, उन्हें स्पष्ट करना चाहिए। यह मेरा शोध का विषय बना और मेरे शोध से परिणाम निकला कि यह नारा तो सिर्फ हिंदू वोट प्राप्त करने के लिए है, जो निश्चित रूप से इस लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्षता वादी देश में उन्मादी और अराजकता पैदा करने वाली है। देश के राष्ट्रवाद को कुठाराघात करती है।’
पूर्व सांसद ने आगे लिखा कि ‘झारखंड में मूल रूप से इंडिया गठबंधन जिसमें झामुमो/कांग्रेस /राजद/ सीपीआईएमएल , दूसरी ओर एनडीए गठबंधन में भाजपा/ आजसू/ जदयू और तीसरा ‘झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा’ का मुकाबला था। चुनाव परिणाम इंडिया गठबंधन के पक्ष में आया। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा 34 सीट लाकर जयपाल सिंह की झारखंड पार्टी द्वारा 1952 के चुनाव में प्राप्त 34 सीट के इतिहास को दोहराया। इंडिया गठबंधन को कुल 56 सीटें मिली। भाजपा और उसके सहयोगी 24 सीट लेकर दूसरे पंक्ति में खड़े रहे। पहली बार एक नई पार्टी ‘झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा’ का सुप्रीमो जयराम महतो चुनाव जीत गये और उनकी पार्टी की उपस्थिति झारखंड में दमदार रही, भले ही उनके प्रत्याशी हार गये हों। झारखंड में तीन तरह के लोग निवास करते हैं- आदिवासी, मूलवासी और प्रवासी। इस चुनाव में दो विचारधारा सामने आया। पहला-आदिवासी मूलवासी ने पूर्ण रूप से भाजपा गठबंधन से दूरी बनाया, और दूसरा है- मूलवासी वैश्य समाज एवं शहरी प्रवासी भाजपा के साथ रहे। यह स्पष्ट तस्वीर इस चुनाव में देखने को मिला। उल्लेखनीय है कि झारखंड में भाजपा आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के लिए सफल नहीं हुई। आदिवासी जनता इसका कारण बताते हैं कि एक गैर झारखंडी पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखंडी अस्मिता के खिलाफ काम किया और सीएनटी/एसपीटी एक्ट को समाप्त करने के लिए विधानसभा में बिल पारित किया था लेकिन झारखंड के तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू नहीं होती तो शायद यह कानून नहीं बचता। आदिवासी कहते हैं कि यह हमारे बिरसा मुंडा और सिद्धू-कान्हू पर हमला था क्योंकि उनके संघर्ष के बदौलत ही सीएनटी-एसपीटी एक्ट बना था, जिससे हमारी जमीन की सुरक्षा हो पाई। इसके अलावा और भी कई कारण बताते हैं। कुड़मी कहते हैं कि 2014 में रघुवर दास जैसे ही मुख्यमंत्री बने उन्होंने केंद्र सरकार के जनजातीय मंत्रालय में कुड़मी के लंबित एसटी मामले को वापस ले लिया। पूर्व जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा का कुड़मी को एसटी बनाने वाला विरोधी बयान भी मंडराता रहा।’
शैलेंद्र महतो ने आगे लिखा कि ‘झारखंड प्रदेश में 24 साल के बाद भी भाजपा का झारखंडीकरण नहीं हो सका। झारखंडी अस्मिता पर भाजपा का कोई स्पष्ट फॉर्मूला नहीं बना। भाजपा का नेतृत्व प्रवासियों (जो दूसरे प्रदेशों से आए हुए लोग हैं) के हाथ में आज भी चल रहा है जिसे आदिवासी- मूलवासी मानने को तैयार नहीं है। इस चुनाव में झारखंडी अस्मिता, नियोजन नीति, स्थानीयता और भाषा-संस्कृति का मुद्दा गौण रहा। झारखंड के सभी दल मूल मुद्दे से दूर रहे। कल्पना सोरेन और जयराम महतो स्टार प्रचारक रहे जिसके चुनावी सभा में लोगों की भीड़ उमड़ती रही। भाजपा का बांग्लादेशी मुद्दा और मोदी-योगी का नारा किसी काम के नहीं आया।’
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