Ranchi : संथाल परगना सत्ता की चाभी कही जाती है और संथाल में समीकरण बनाने के लिय सभी दल जबरदस्त तरीके से फिल्डिंग करते रहे हैं। खासकर BJP और JMM के बीच संथाल की 18 सीटों में वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जाता रहा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी बैकफुट पर आ गयी थी और संथाल की सात एसटी सीटों पर उसे करारी हार मिली। लिस्ट जारी होने के पहले ये कयास लगाये जा रहे थे कि बीजेपी पुराने जख्मों से सबक लेते हुए जीत की उम्मीद वाले कैंडीडेट को टिकट देगी लेकिन बीजेपी स्ट्रैटजी मेकिंग में फेल होती दिखाई दे रही है। लुईस साइडलाईन में खड़ी हैं, तो ताला मरांडी को टिकट से वंचित कर दिया गया है। वहीं सुफल मरांडी भी सन्न हैं कि उन्हें टिकट क्यों नहीं दिया गया! एनडीए फोल्डर की आजसू पार्टी को पाकुड़ सीट लेकर बीजेपी ने अपने ही कार्यकर्ताओं से फजीहत मोल ले ली है। पाकुड़ के बीजेपी कार्यकर्ता सवाल कर रहे हैं कि पाकुड़ में बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को राज्य का मुद्दा बनाने वाली पार्टी आखिर पाकुड़ से परहेज क्यों कर रही है? बीजेपी कार्यकर्ता कोल्हान और पलामू प्रमंडल की कई सीटों पर बीजेपी के घोषित प्रत्याशियों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। पोटका से मेनका सरदार ने मोर्चा खोल दिया है तो हुसैनाबाद से बिनोद सिंह ने। वहीं बड़कागांव में भी बड़ा हल्ला हो रहा है।
लुईस के सामने क्या हैं विकल्प?
बीजेपी लिस्ट के अनुसार पार्टी ने लुईस मरांडी को किनारे कर दिया है या फिर ऐसा कहा जाय कि लुईस मरांडी को बरहेट से हेमंत के खिलाफ चुनाव लड़ाने की तैयारी बीजेपी कर रही है। लेकिन स्थिति यह है कि लुईस मरांडी वहां से चुनाव लड़ने के मूड में नहीं हैं। अब सवाल उठता है कि लुईस मरांडी अब क्या करेंगी? कयासों का बाजार गरम है कि लुईस मरांडी अपना ठौर ठिकाना ढूंढने में लग गई हैं। अवसर मिलते ही बीजेपी को टाटा बाय बाय कर सकती हैं या फिर दुमका से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़ी होकर बीजेपी की उम्मीदवार सुनील सोरेन के लिये मुसीबत खड़ी कर सकती हैं। जबकि बीजेपी ने अभी बरहेट विधानसभा का टिकट विकल्प के रूप में उनके लिये रखा है, ऐसी संभावना है।
पाकुड़ में कार्यकर्ताओं में उबाल
बीजेपी ने पाकुड़ विधानसभा सीट आजसू कोटे में डालकर पाकुड जिला बीजेपी कार्यकर्ताओं के विचारों को ठेंगा दिखा दिया है। पाकुड़ के बीजेपी कार्यकर्ता इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि पाकुड़ में घुसपैठ के मुद्दे को लेकर बीजेपी मुखर रही है और उसे राज्य स्तर का मुद्दा बनाया है लेकिन आजसू को टिकट देकर उसने गलत किया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये माना कि मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 65 फीसदी है लेकिन हिन्दू वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है। बीजेपी को एंटी इनकंबेंसी का बेनिफिट मिल सकता था लेकिन बीजेपी के आला नेता इस समीकरण को समझने को तैयार नहीं हैं।
ताला मरांडी भी किनारे लग गये
रघुवर काल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी भी इस चुनाव में टिकट की रेस से बाहर कर दिये गये हैं। ताला मरांडी संथाल में एक जाना पहचाना नाम हैं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया है। वहीं सुफल मरांडी भी किनारे लगा दिये गये। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि बीजेपी संथाल के सक्सेस मंत्र को समझने में क्या फेल हो गयी है या उसने जो संथाल का विश्लेषण किया है, वह बिल्कुल सटीक किया है?
कोल्हान में कलेश
कोल्हान की पोटका सीट को लेकर भी बीजेपी कटघरे में खडी हो गयी है। बीजेपी ने पोटका विस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी को मैदान में उतारा है जबकि तीन बार विधायक रही मेनका सरदार को टिकट नहीं दिया है। 2019 के चुनावों में मेनका सरकार जेएमएम उम्मीदवार से बड़े अंतर से हारी थीं फिर भी मेनका सरदार का दावा है कि बीजेपी उन्हें टिकट देती तो इस बार उनकी जीत सुनिश्चित थी। बीजेपी से नाराज मेनका सरदार ने नाराज होकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया है।
टूंडी या सिल्ली, सुदेश कहां से?
आजसू कोटे में टूंडी विधानसभा सीट आने के बाद कयासों का बाजार गरम है कि सुदेश महतो टूंडी से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन सवाल यह भी उठ रहे हैं कि टूंडी से लडेंगे तो सिल्ली का क्या होगा? ऐसी भी संभावना है कि सिल्ली में जेएमएम और जेएलकेएम व आजसू के बीच त्रिकोणिय संघर्ष हो और सुदेश को निराशा हाथ लगे। इसी आशंका से सहमे सुदेश टूंडी से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन टूंडी विधानसभा सीट पर भी त्रिकोणिय संघर्ष की संभावना दिखाई दे रही है तो सवाल यह है कि सुदेश के लिये सुरक्षित सीट कौन सी है? ऐसी स्थिति में संभव है कि सिल्ली के मतदाताओं के मिजाज को बदलने के लिये वह अपनी पत्नी नेहा महतो को आजसू पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया जा सकता है ताकि सिल्ली पर आजसू की सत्ता बरकरार रहे। वहीं दूसरी ओर सिल्ली में सुदेश को शिकस्त देने वाले अमित महतो जेएमएम में आ गये हैं। मतलब साफ है कि सिल्ली अभी भी दूर है।
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