KhabarMantraLive: झारखंड की भाषाई पहचान को मजबूती देने के लिए सांसद डॉ. प्रदीप कुमार वर्मा ने राज्यसभा में कुड़माली, मुंडारी, नागपुरी, खोरठा और हो भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि इन भाषाओं को मान्यता मिलने से न केवल झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण मिलेगा, बल्कि इन भाषाओं के अध्ययन और विकास का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
सांसद डॉ. वर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि झारखंड की ये भाषाएँ लाखों लोगों की मातृभाषा हैं और उनकी सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा के ‘उलगुलान’ आंदोलन में मुंडारी भाषा की भूमिका को रेखांकित किया और कहा कि यह झारखंड की जनजातीय अस्मिता का प्रतीक है। इसी तरह, ‘हो’ भाषा सिंहभूम क्षेत्र में प्रमुख रूप से बोली जाती है, जबकि ‘कुड़माली’ भाषा झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुड़मी समुदाय से जुड़ी हुई है। ‘नागपुरी’ भाषा राज्य की राजधानी रांची समेत पूरे झारखंड में बोली जाती है, और ‘खोरठा’ भी क्षेत्रीय संवाद की एक महत्वपूर्ण भाषा है।
उन्होंने यह भी कहा कि नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन पर जोर दिया गया है, लेकिन जब तक इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं मिलेगा, तब तक इन्हें सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं होगी। इससे इनके शिक्षण और विकास में कठिनाइयाँ बनी रहेंगी। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए और इनके अध्ययन, संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष योजनाएँ लाई जाएँ।
डॉ. वर्मा ने कहा कि झारखंड की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। यदि सरकार इन भाषाओं को संवैधानिक मान्यता देती है, तो यह केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की भाषाई विविधता को और सशक्त व समृद्ध बनाएगा।