KhabarMantraLive : महापर्व छठ की शुरुआत आज से हो गयी है। तो आइये आपको इस महापर्व छठ के बारे में कुछ बातें बताते है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से इस महापर्व छठ की शुरुआत होती है। इस अवसर पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। महिलाएं इस व्रत को अपनी संतान की सुरक्षा और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिये करती हैं। छठ पर्व के पहले दिन ‘नहाए खाय’ का आयोजन किया जाता है, जो इस पर्व को मनाने वालों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
नहाय खाय का महत्व
नहाय खाय का अर्थ है स्नान के बाद भोजन करना। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं। इसके बाद वे भात, चना दाल और कद्दू या लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं। यह माना जाता है कि नहाय खाय का यह भोजन साधक में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। साथ ही, यह भी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले साधक इस सात्विक आहार के माध्यम से खुद को पवित्र कर छठ पूजा के लिए तैयार होते हैं। इस बार नहाय खाय के दिन सूर्योदय सुबह 6:39 बजे और सूर्यास्त शाम 5:41 बजे होगा।
छठ पर्व का महत्व
छठ पूजा, जिसे डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है, एक चार दिवसीय त्योहार है जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। वर्तमान में, यह पर्व देश और विदेश में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा है। छठ पूजा के अवसर पर घाटों पर विशेष चहल-पहल होती है। अनेक लोग पवित्र नदियों के किनारे और अपने घरों में इस पर्व को मनाते हैं। यह पूजा दिवाली के बाद कार्तिक मास के छठे दिन से प्रारंभ होती है और यह सूर्य देवता को समर्पित एक पवित्र उत्सव है, जिसमें उनकी विशेष आराधना की जाती है। इस दौरान भक्त अपने प्रियजनों की समृद्धि, सुख और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करते हैं।
वैज्ञानिक और औषधीय महत्व
सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे रंगों का विज्ञान छुपा है। इंसान के शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी कई बीमारियों के शिकार होने का खतरा होता है। प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। त्वचा के रोग कम होते हैं। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है। वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलीय बदलाव होता है। तब सूर्य की परा बैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके दुष्प्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।