Ranchi : डिजीटल मेहमानी और सुखल फुटानी के दौर में आंकड़ों को समेटने की जद्दोजहद लोकतंत्र की चुनावी परिपाटी में आज भी जिन्दा है। आप लाख कहें कि देश ने जातिवाद को और वंशवाद को अपने शिकंजे में जकड़ रखा है लेकिन यह भी सच है कि इसी जकड़न की वजह से आपको राजनीति का फर्श और अर्श दोनों नसीब होते हैं। आपका ओहदा आपकी जाति की जनगणना के आधार पर तय होता है। ये ही देश के लोकतंत्र की राजनीति का सबूत है। बीजेपी ने कुर्मी जाति को सांसद को केन्द्र में मंत्री बनाने की बात कह कर नया चुनावी शिगूफा छोड दिया है। जाहिर है कि कुर्मी नेताओं की बयान भर से बांछें खिल गयी होंगी। केन्द्रीय मंत्रीमंडल का विस्तार जब भी हो तब कुर्मी जाति को मंत्री पद दिया जा सकता है। जमशेदपुर से सांसद विद्युतवरण महतो आगे आ रहे हैं। वहीं बीते लोकसभा चुनाव में आजसू कोटे से सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के नाम की भी चर्चा जोरों पर थी लेकिन बीजेपी ने आजसू की मांग को तवज्जो देना मुनासिब नहीं समझा।
झारखंड में चुनाव की सियासी बयार में यूं तो आदिवासियों के हिमायती नेताओं की कतार खड़ी है, सबके अपने अपने दावे हैं, सबके अपने सुर लेकिन कुर्मी जाति की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल आज तक कुर्मी के हक में किसी भी बड़े आन्दोलन को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके हैं। राज्य के अधिकृत आंकड़े बताते हैं कि राज्य में करीब 16 प्रतिशत कुर्मी समुदाय के मतदाता है जबकि आदिवासी की आबादी कुल 27 फीसदी बताई जाती है। आदिवासियों की आबादी के पीछे का एक सच और है, और सच यह है कि राज्य की एक बड़ी आदिवासी आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है अथवा कन्वर्ट हो चुकी है। इस लिहाज से झारखंड में कर्मी मतदाता ज्यादा असरदार हैं। इस समुदाय में पढ़ा लिखा तबका भी और आर्थिक रूप से संपन्न भी। बुद्धिजीवियों की बड़ी संख्या है फिर भी कुर्मी जाति को सरकारें दरकिनार करती आई हैं। राज्य में एक भी कुर्मी जाति से मुख्यमंत्री काबिज नहीं हुआ। मंत्री तो बने लेकिन यह सौभाग्य ऐसे नेताओं को मिला जो कुर्मी जाति के लोगों को वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं। सुदेश महतो, मथुरा महतो, चंद्रप्रकाश चौधरी सहित कई नेता राज्य सरकार में बतौर मंत्री कई महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके हैं।
5 लोकसभा की 30 विस सीटों पर धमक
कुर्मी मतदाताओं की रांची, गिरिडीह, हजारीबाग, धनबाद और जमशेदपुर की लोकसभा सीटों पर जबर्दस्त पकड़ है। इन पांच लोकसभा सीटों में आने वाली विधानसभा सीटों सहित पूरे राज्य की 35 विधानसभा सीटों पर कर्मी मतदाताओं के मिजाज से समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं। हजारीबाग में कृर्मी वोटर्स की संख्या 15 फीसदी है, रांची में 17 फीसदी, धनबाद में 14 फीसदी, जमशेदपुर में 11 फीसदी और गिरिडीह में 19 फीसदी। इस तरह से पूरे सूबे की 81 विधानसभा सीटों में से करीब 35 सीटों पर बोलबाला है।
जमशेदपुर ने 35 साल में आठ बार कुर्मी सांसद चुना
जमशेदपुर में बीते 35 सालों में कुल 11 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से तीन बार ही ऐसा हुआ है जब अर्जुन मुंडा, डॉक्टर अजय कुमार और नीतिश भारद्वाज को चुना है, बाकी आठ बार यहां केी जनता ने कुर्मी सांसद को चुनकर ही संसद भवन भेजा है। जबकि रांची में भी ऐसा ही समीकरण देखने को मिला है, पांच बार रामटहल चौधरी को रांची की जनता ने चुनकर भेजा है क्योंकि 17 प्रतिशत कुर्मी हैं।
अब तक केन्द्र में प्रतिनिधित्व नहीं
आज बीजेपी भले ही राज्य के कुर्मी समुदाय को लेकर प्यार बरसाने के मूड में दिखाई दे रही हो लेकिन यह सच है कि हर बार राजनीतिक दलों ने कुर्मी समुदाय के सांसदों को सिर्फ सरकार के समर्थन का हथियार ही बनाया है। केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कुर्मी समुदाय को जगह मिली हो, इसका उदाहरण गुगल बाबा भी नहीं बता पायेंगे। जाहिर है, बीजेपी को भी चोट खाने के बाद समझ में आया कि राज्य में कुर्मी वोटर भी किंगमेकर बन सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कुर्मी नेताओं के बीच आपसी तालमेल नहीं है सुदेश महतो जो कभी सर्वमान्य कुर्मी नेता कहलाते थे, उसकी जगह भी नये नवेले नेता जयराम टाईगर लेने के लिये आगे बढ़ चुके है। इसलिये सुदेश को भी अपने वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा दिखाई दे रहा है। वहीं बीजेपी भी अब समझ चुकी है कि बिना कुर्मी के कल्याण होना मुश्किल है। कांग्रेस ने काफी पहले समझ लिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुर्मी को प्रदेश कांग्रेस की कमान दे दी। बड़ा सवाल यह है कि बिखरे कुर्मी वोटरों को क्या भाजपा जैसे राजनीतिक दल केन्द्र में मंत्री पद का लोलीपॉप देकर कुर्मी वोटर्स को गोलबंद कर पायेंगे?
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