KhabarMantraLive: मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, झारखंड की माटी में जन्मे वह अद्वितीय शख्सियत थे, जिन्होंने न केवल झारखंड राज्य की मांग सबसे पहले उठाई, बल्कि आदिवासियों के हक और अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 3 जनवरी 1903 को खूंटी जिले के टकरा गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा को बचपन में प्रमोद पाहन के नाम से जाना जाता था। उनका वास्तविक नाम ईश्वर जयपाल सिंह था, लेकिन उनके कार्यों और योगदानों के कारण वे मरांग गोमके (महान नेता) कहलाए।
अलग झारखंड राज्य की मांग
वर्ष 1940 में रामगढ़ में हुए कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सामने उन्होंने अलग झारखंड राज्य की मांग रखी थी। यह वह समय था जब झारखंड की अलग पहचान को लेकर किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया था। मरांग गोमके ने न केवल इस मांग को बुलंद किया, बल्कि झारखंड के आदिवासियों की संस्कृति, परंपरा और अधिकारों के संरक्षण के लिए संघर्ष करते रहे।
शिक्षा, खेल और राजनीति में उत्कृष्टता
जयपाल सिंह मुंडा का जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ है। खूंटी के छोटे से गांव में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने अपनी प्रतिभा से विश्व स्तर पर पहचान बनाई।
• खेल में योगदान: 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप में उन्होंने देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
• शिक्षा में उपलब्धि: ब्रिटिश शासनकाल की सबसे कठिन परीक्षा, इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) पास की। हालांकि, आदिवासी कल्याण के लिए उन्होंने इसकी ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ दी।
• राजनीति में योगदान: 1938 में उन्होंने आदिवासी महासभा का गठन किया। 1950 में झारखंड पार्टी बनाई और संविधान सभा में आदिवासियों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की।
संविधान सभा में यादगार भाषण
भारत की संविधान सभा में मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासियों के अधिकारों और उनके संरक्षण के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उनके तर्क और विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने आदिवासी समाज की अनदेखी को चुनौती दी और उनके विकास के लिए ठोस नीतियों की वकालत की।
झारखंड राज्य निर्माण के प्रेरणा स्रोत
मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन के प्रेरणा स्रोत रहे। उनकी दूरदृष्टि और नेतृत्व क्षमता ने झारखंड के लोगों को एकजुट किया। उनकी विरासत आज भी झारखंड के हर व्यक्ति के दिल में जीवित है।
जयपाल सिंह मुंडा न केवल झारखंड के, बल्कि पूरे भारत के एक महान नेता थे। उनकी संघर्ष गाथा, साहस और समर्पण हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। आज जब हम झारखंड के विकास और अधिकारों की बात करते हैं, तो उनके योगदान को नमन किए बिना यह चर्चा अधूरी रहती है।