Ranchi: आदिवासी समुदाय का प्रमुख पर्व सरहुल सोमवार (31 मार्च) से पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ शुरू हो गया है। सरना स्थल पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। पहले दिन सरना समुदाय के लोग उपवास पर रहेंगे और मछली-केकड़ा पकड़ने की परंपरा निभाएंगे।
मछली और केकड़ा पकड़ने की मान्यता
आदिवासी समाज में मान्यता है कि मछली और केकड़ा ही पृथ्वी के पूर्वज हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र की गहराई में पड़ी मिट्टी को मछली और केकड़े ने ही ऊपर लाकर पृथ्वी का निर्माण किया था। सरहुल के पहले दिन इन्हीं को समर्पित किया जाता है। इस परंपरा के तहत युवा तालाब, पोखर, चुआं या अन्य जलस्रोतों में जाकर मछली और केकड़ा पकड़ते हैं। पकड़े गए केकड़ों को घर की रसोई में लटका दिया जाता है। बाद में इनका चूर्ण बनाकर खेतों में छींट दिया जाता है, ताकि फसलों में भरपूर बालियां लगें।
जल रखाई पूजा और बलि देने की परंपरा
शाम के समय जल रखाई पूजा होगी। इसके लिए पाहन (पुजारी) दो नये घड़ों में तालाब या नदी से पानी भरकर साफ-सुथरे सरना स्थल पर रखेंगे। इसी पूजा के दौरान पांच मुर्गे-मुर्गियों की बलि दी जाती है।
- सफेद मुर्गे की बलि सृष्टिकर्ता के नाम पर दी जाती है।
- लाल मुर्गा हातू बोंगा (ग्राम देवता) के लिए चढ़ाया जाता है।
- माला मुर्गी जल देवता (इकिर बोंगा) को समर्पित की जाती है।
- लुपुंग या रंगली मुर्गी पूर्वजों के नाम पर बलि दी जाती है।
- काली मुर्गी की बलि बुरी आत्माओं को शांत करने के लिए दी जाती है।
पुश्तैनी रीति-रिवाजों के साथ होगा सरहुल पर्व का समापन
सरहुल के अगले दिन गांव के लोग एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करेंगे। पाहन द्वारा पुरखों को पकवान और तपावन अर्पित किया जायेगा। इसके बाद पारंपरिक नृत्य और गीतों का आयोजन होगा। सरहुल पर्व आदिवासी समाज के प्रकृति प्रेम और उनके सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।
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