Ranchi: विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है। आदिवासियों की आबादी किस कारण से कम हो रही है और किसकी आबादी बढ़ रही है, यह सरकार को देखना चाहिये। 1951 से 2011 तक के जनगणना सर्वे में झारखंड में बड़े तादात में आदिवासियों की आबादी घटी है। दूसरी तरफ, अल्पसंख्यक में मुसलमानों की आबादी बढ़ी है। हमें इस पर चिंता करनी चाहिये कि आखिर आदिवासियों की आबादी कैसे घट रही है?
आदिवासियों को ही भुगतना होगा आबादी घटने का नुकसान
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि यदि आदिवासियों की आबादी घटेगी, तो लोकसभा हो या विधानसभा की सीट हो, या फिर सरकारी नौकरियां हो, इसका दूरगामी परिणाम पड़ेगा। सभी को इसकी चिंता करनी चाहिये। इसलिये, झारखंड में एनआरसी हो जाना चाहिये, ताकि यह पता चल सके कि आखिर राज्य में आदिवासियों की आबादी कैसे घटी? या फिर आप ही कोई कमीशन बना कर आदिवासियों की आबादी को लेकर जांच करा दें। उन्होंने यह भी दावा किया कि संथाल परगना में 16 से 17% आदिवासियों की आबादी घटी है। यह गंभीर मुद्दा है। इसका नुकसान भविष्य में आदिवासियों को भुगतना होगा।
परिसीमन में कहीं घट न जाये आदिवासी सीट: चमरा लिंडा
वहीं, आदिवासी विभाग के मंत्री चमरा लिंडा ने कहा कि आदिवासी खाने-पीने के लिये बहुत झंझावात नहीं करते हैं। वे पुरखों से ही कंद मूल खाकर अपना जीवन यापन करते आये हैं। आदिवासी अपने अस्तित्व के लिये लड़ रहे हैं। वर्ष 2002 में भाजपा की सरकार ने परिसीमन के तहत 6 आदिवासी आरक्षित सीटों को हटा दिया गया। लेकिन उस वक्त शिबू सोरेन जी प्रधानमंत्री से मिले और इन सीटों को नहीं हटाने का आग्रह किया। इसके बाद वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने बिल लाकर पुराने फैसले को रद्द कर दिया और हम 6 आदिवासी आरक्षित सीट को बचाने में कामयाब हुए। अब 2026 में परिसीमन होने वाला है, तो हमें फिर से वही चिंता सता रही है।