Ranchi : विधानसभा चुनावों में संताल और कोल्हान की 32 सीटों पर भाजपा के पक्ष में क्या करिश्माई परिणाम आएंगे या बिना बारूद के कारतूस साबित होंगे बाबूलाल? कुछ ऐसे ही सवाल राजनीति की गलियारे जिंदा होने लगे हैं।
साल 2020 में बाबूलाल की भाजपा में घर वापसी एक मास्टर स्ट्रोक्स के जैसी थी। मुंडा के केंद्र में जाने के बाद भाजपा को एक आदिवासी चेहरे की जरूरत थी। हालांकि विकल्प थे, लेकिन सर्वमान्य नेता के रूप में भाजपा के पास ऐसा चेहरा नहीं था, जिसके दम पर संताल में अपनी जड़ों को मजबूत किया जा सके। बाबूलाल आए और झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हो गया। साथ ही बाबूलाल का 14 सालों का वनवास खत्म हो गया। भाजपा को भरोसा था कि बाबूलाल मरांडी का लंबा अनुभव भाजपा के लिए वरदान साबित होगा, लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की उम्मीदों पर पानी फिर गया। साथ ही लोकसभा चुनावों में जो नतीजे आए उसमें भाजपा खूंटी, लोहरदगा, सिंहभूम, दुमका और राजमहल सीटें हार गयी।
बताया गया कि लंबे समय से चुनाव की तैयारी कर रही पार्टी असल लड़ाई के समय अपनी कार्ययोजना को जमीन पर लागू करने में विफल रही। इसके साथ ही जमीनी कार्यकर्ता को समझने में बड़े नेता उलझे रहे। सिंहभूम से भाजपा की गीता कोड़ा 1 लाख 68 हजार वोटों से हार गईं और लोहरदगा जो परंपरागत सीट थी वहां से भी 1लाख 39 हजार के अंतर से हारी। साल 2019 में खूंटी लोकसभा से जीते अर्जुन मुंडा इस बार 1 लाख 49 हजार वोटों के अंतर से हार गए। आप आश्चर्य करेंगे कि बाबूलाल मरांडी की गैरहाजिरी में जिस भाजपा को 2019 के चुनावों में 51.6 प्रतिशत वोट मिले थे, उसी भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में 44.6 प्रतिशत ही वोट मिले। इतना ही नहीं, साल 2019 के बाद से सात विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुये हैं, जिनमें से जेएमएम ने दुमका, मधुपुर, डुमरी और गांडेय पर फतेह हासिल की है। जबकि भाजपा की सहयोगी आजसू ने रामगढ़ में वापसी की है।
आप एक बात पर गौर कीजिए 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 57 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी, लेकिन कुछ महीने बाद विधानसभा चुनावों में उसे महज 25 सीटें ही हासिल हुई। वहीं 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 51 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली है, मतलब साफ है कि बाबूलाल की घर वापसी से भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ है। तो क्या मान लिया जाय कि बाबूलाल मरांडी करिश्माई नेता नहीं रहे? तो क्या मान लिया जाय कि 1998 में दुमका लोकसभा सीट से दिशोम गुरु को हराने वाले बाबूलाल में वो दम नहीं रहा? आंकड़े तो ये ही गवाही दे रहे हैं कि बाबूलाल मरांडी भाजपा के लिए बिना बारूद के कारतूस साबित हो रहे हैं। जिस तरह से भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता अमर बाउरी की सक्रियता बढ़ी है और भाजपा में कोल्हान के टाइगर की एंट्री हुयी है, उससे लगता है कि बाबूलाल मरांडी ने अगर विधानसभा चुनाव में करिश्मा नहीं दिखाया तो उनके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं!
कोल्हान की 14 और संताल की 18 सीटें। मतलब कुल जमात 32 सीटें हैं, जो सत्ता का समीकरण बनाने में खास भूमिका निभाती हैं। बाबूलाल को संताल का एवं चम्पाई और अर्जुन मुंडा को कोल्हान का सर्वमान्य नेता कहा जाता है। वहीं आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा के पास मात्र दो सीट है। ऐसे में सवाल है कि क्या बाबूलाल का संताल में जादू चल पाएगा?
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