Ranchi : पूर्व IPS राजीव रंजन सिंह ने हाल ही में भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण पार्टी का सदा के लिये बाय-बाय कर दिया। पार्टी को पत्र लिख कर साफ कह दिया कि बीजेपी RSS के सिद्धांतों के विपरीत काम कर रही है। कहते हैं राजनीति एक ऐसा सितारा है जो बाहर से बेहद ही आकर्षित करता है। मगर इसके अंदर जैसे जैसे आप प्रवेश करेंगे। इसकी सच्चाई सामने आती जायेंगी। जिसमें ना तो कोई नैतिक और ना ही अनैतिक सिर्फ अवसर की तलाश होती रहती है, जिसके बल पर पूरी राजनीति होती रहती है। अवसरवादी इस राजनीति के दौर में हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में ब्यूरोक्रेट्स अपनी किस्मत आजमाने निकले हैं। कई वर्तमान समय में केन्द्र से लेकर राज्यों में बनी सरकार में सफलता पाकर महत्वपूर्ण पदों पर बैठकर अच्छा काम भी कर रहे हैं। ऐसे में यहां बुनियादी सवाल यह है कि झारखंड के ब्यूरोक्रेट्स के लिये राजनीति में उनका भविष्य क्या है? वैसे ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि ब्यूरोक्रेट्स जिनका नाता झारखंड से रहा है, वह राजनीति के मैदान में कम ही कमाल दिखा पाये हैं। बंदी उरांव पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने वीआरएस लेकर राजनीति ज्वाईन की और उन्हें सफलता भी मिली। वहीं दूसरा उदाहरण आइएएस यशवंत सिन्हा का है जो हजारीबाग से सांसद रहे और केन्द्रीय मंत्री तक बने। मौजूद झारखंड सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव भी ब्यूरोक्रेट्स रहे हैं जो लगातार चुनाव जीते हैं और राज्य सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। बीते 10-12 सालों में बीडी राम का भी नाम है जिन्होंने डीजीपी पद से रिटायर होने के बाद बीजेपी ज्वाईन की और पलामू से लगातार सांसद चुने गये। हालांकि उन्हें लगातार जीत हासिल करने के बाद भी केन्द्र में मंत्री पद नहीं मिल सका। लेकिन राजनीति लिहाज से उन्होंने एक सफल पारी जरूर खेली है। इसी तरह सरकारी नौकरी को त्यागकर झारखंड विधानसभा में आजसू के टिकट पर चुनाव जीतकर आए लंबोदर महतो पार्टी के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। डॉक्टर अजय कुमार जमशेदपुर में एसपी रहे और उन्होंने क्राईम कंट्रोल में अहम भूमिका निभाई। राजनीति में आने के बाद वह जमशेदपुर से सांसद भी बने। बाद में आम आदमी पार्टी गये और अब फिर से कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
अधिकांश को मिलती रही है असफलता
झारखंड की राजनीति में ब्यूरोक्रेट्स किस्मत आजमाने के लिए उतरते रहे हैं। करीब दो दर्जन से अधिक ऐसे नाम हैं जिन्होंने IAS और IPS बनकर कभी सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इन्हें छोड़कर राजनीति में किस्मत आजमाना इन्होंने उचित समझा। इनमें से कुछ सफल हुए मगर अधिकांश को अब तक सफलता नहीं मिली। राजनीति में आने के बाद इन अधिकारियों की इच्छा विधायक, सांसद बनने की रहती है मगर इनमें से कई ऐसे हैं जिनको पार्टी द्वारा टिकट ही नहीं मिला। कुछ को मौका मिला तो जनता ने ठुकरा दिया। पूर्व गृह सचिव जेबी तुबिद, आईपीएस रहे लक्ष्मण प्र. सिंह जैसे कई नाम हैं जिन्हें दो दो बार मौका मिला मगर सफल नहीं हो सके। पूर्व डीजीपी डीके पांडे, अरुण उरांव सरीखे अधिकारियों को तो मौका ही नहीं मिला। आईपीएस की नौकरी छोड़ भाजपा में शामिल होनेवाले स्व. अमिताभ चौधरी को टिकट नहीं मिलने पर झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर 2014 में चुनाव लड़े मगर रांची लोकसभा क्षेत्र की जनता का आशीर्वाद नहीं मिला। राजनीति के क्षेत्र में सफल होने वाले झारखंड के प्रमुख अधिकारियों में यशवंत सिन्हा, डॉ अजय कुमार, डॉ रामेश्वर उरांव आदि का नाम आज भी लिया जाता है।
राजनीति में अवसरवादिता हावी है और ये ब्यूरोक्रेट्स अवसर को भांपने में माहिर होते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि राजनीति की कोई दशा और दिशा नहीं होती जो समय और परिस्थिति के अनुसार तेजी से बदल जाती है। इस बदलाव को समझने में जो माहिर होते हैं वो सफल हो जाते हैं जो नहीं होते वे किनारे हो जाते। बहरहाल चुनाव के वक्त राजनेताओं का दल बदलना कोई बड़ी बात नहीं होती, मगर सरकारी बाबूओं का राजनीति में आना जरूर बड़ी बात हो जाती है।
Read More : बिहार के ये दबंग IPS बने IB के डिप्टी डायरेक्टर
Read More : मंत्री दीपिका ने कई भाजपाईयों को कांग्रेस जॉइन कराया
Read More : हेमंत की घोषणा पर बार काउंसिल का दिल…MANGE MORE!
Read More : पार्टी के चक्कर में बदनाम हो रहे…पति-पत्नी !
Read More : झारखंड कैबिनेट में 63 प्रस्तावों पर लगी मुहर…देखिये क्या