Thursday, November 21, 2024
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बांग्लादेशी घुसपैठ के बहाने झारखंड में चुनावी बिसात बिछाने में जुटे हैं हिमंत

Ranchi (Abhinav Kumar): झारखंड में विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होना है। ऐसे में भाजपा हर हाल में यहां ‘कमल’ खिलाने के लिए एड़ी चोटी एक कर रखी है। यही वजह है की असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को झारखंड फतह करने का टास्क दिया गया है। चुनाव सह प्रभारी बनाकर एक बड़ी जिम्मेदारी उनके कंधे पर दी गयी है। असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा केंद्रीय नेतृत्व के करीबी और अपने कड़े बयानों के लिए जाने जाते हैं। पूर्व में कांग्रेसी रहे हिमंत को अब भाजपा में हिंदुत्व का हार्ड लाइनर भी माना जाता है। भाजपा नेतृत्व ने झारखंड की जिम्मेदारी देकर यह बताया है कि राज्य विधानसभा चुनाव में वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। हिमंत भी चुनावी अभियान में जोर शोर लग गये है। आंकड़ों के मुताबिक चुनाव सह प्राभरी बनने के बाद वे 15 बार झारखंड का दौरा कर चुके हैं। संगठन मजबूती से लेकर झारखंड के ज्वलंत मुद्दों पर पूरे दमखम के साथ बोलते नजर आते हैं। रोजगार भ्रष्टाचार बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे अहम मुद्दों पर कड़े तरीके से अपनी बात को रखते हैं।
बांग्लादेशी घुसपैठ को अहम मुद्दा बना राजनीति कर हिमंता कहते हैं कि… बांग्लादेशी घुसपैठ चरम पर है। वे आदिवासियों और दलितों की जमीनें हड़प रहे हैं तथा उन पर अत्याचार कर रहे हैं। राज्य के 20 विधानसभा क्षेत्रों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 48 प्रतिशत हो गई है। अगर यह परिपाटी जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब घुसपैठिए विधानसभाओं में बैठेंगे। झारखंड की राजनीति में इन दिनों असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा छाए हुए हैं। सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बने हुए हैं। पॉलिटिक्ल नैरेटिव सेट कर रहे हैं। उनकी पहल पर झामुमो के वरिष्ठ नेता रहे चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हो चुके हैं। वहीं, बोरियो के विधायक रहे लोबिन हेंब्रम भी भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। हिमंत झारखंड को जानने और पहचानने में लगे हुए हैं। वे जनता से जुड़ना जानते हैं। उसके महत्व को वह पहचानते हैं। उनका कहना है कि वह मात्र एक राजनीतिक शख्सियत के तौर पर जनता से नहीं जुड़ते, दिल से जनता से जुड़ते हैं। उन रिश्तों को आत्मसात करते हैं। वह कोशिश करते हैं कि वह जनता का दिल ही नहीं जीतें, वह उसका विश्वास भी जीतें। हिमंता और मुद्दा दोनों साथ-साथ चलते हैं। जमीनी मुद्दों की पहचान करने की ताकत उनको अलग श्रेणी के नेताओं की कतार में लाकर खड़ा करता है। झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी गतिविधियां उफान पर हैं। पिछले दो महीने से जिस एक शख्स ने राज्य में भाजपा की राजनीति को अलग धार दी है उसका नाम हिमंत बिस्वा सरमा है। कहा जाता है कि राजनीति हमेशा अवधारणाओं पर निर्भर करती है और मानवीय संवेदनाओं का इसमें कोई स्थान नहीं होता। वहीं, असम के मुख्यमंत्री और झारखंड में भाजपा के चुनाव सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने झारखंड को जितनी तेजी से आत्मसात किया है, वह अकल्पनीय है। जून के तीसरे सप्ताह में नयी जिम्मेदारी मिलने के बाद से भाजपा के इस फायरब्रांड नेता ने झारखंड में नयी छाप छोड़ी है। हिमंत की राजनीति इसलिए भी अनोखी लगती है, क्योंकि उसमें आक्रामकता के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों का रंग भी दिखता है। इसका एक उदाहरण उस समय मिला, जब हिमंत बिस्वा सरमा पाकुड़ के गायबथान पहुंचे। वहां एक आदिवासी परिवार की जमीन पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया था। उसके साथ मारपीट भी की गयी थी। हिमंत बिस्वा सरमा उस गांव में पहुंच गये और उस परिवार की आर्थिक मदद भी करवा दी। वह बेंगाबाद भी पहुंच गये, जहां के एक हवलदार की एक शातिर अपराधी ने इलाज के क्रम में शेख भिखारी अस्पताल में हत्या कर दी थी। पिछले सप्ताह जब रांची में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने आक्रोश रैली का आयोजन किया… तो उसमें हिमंत बिस्वा सरमा की आक्रामक रणनीति का स्वरूप भी देखने को मिला था।

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