Friday, March 14, 2025
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कुंभ समाप्ति के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु? जानिए उनकी रहस्यमयी दुनिया

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KhabarMantraLive: महाकुंभ में नागा साधु विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। उनके भस्म से ढके शरीर, लंबी जटाएं और दिगंबर स्वरूप श्रद्धालुओं के बीच जिज्ञासा का विषय बनते हैं। लेकिन जैसे ही कुंभ समाप्त होता है, ये साधु अचानक गायब हो जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ये नागा साधु कहां चले जाते हैं? आइए जानते हैं उनके रहस्यमयी जीवन के बारे में।

कुंभ के बाद कहां जाते हैं नागा साधु?

कुंभ समाप्त होने के बाद नागा साधु अपनी साधना और तपस्या में लौट जाते हैं। वे मुख्य रूप से अखाड़ों में वापस चले जाते हैं, जहां वे ध्यान, योग और कठोर तपस्या में लीन रहते हैं। नागा साधु दो प्रमुख अखाड़ों से जुड़े होते हैं – महापरिनिर्वाण अखाड़ा (वाराणसी) और पंच दशनाम जूना अखाड़ा

कुंभ के दौरान नागा साधु दिगंबर स्वरूप में होते हैं और त्रिशूल, रुद्राक्ष की माला और भस्म धारण किए रहते हैं। कुंभ का पहला शाही स्नान इन्हीं साधुओं द्वारा किया जाता है, जिसके बाद अन्य श्रद्धालु गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।

कैसे बिताते हैं नागा साधु अपना जीवन?

कुंभ समाप्ति के बाद नागा साधु अपने आश्रमों में लौटकर अपनी कठोर साधना जारी रखते हैं। वे हिमालय, घने जंगलों और एकांत स्थानों में जाकर तपस्या करते हैं। कुछ साधु पहाड़ों की गुफाओं में रहते हैं, जहां वे केवल फल-फूल खाकर जीवन व्यतीत करते हैं। इनका मानना है कि धरती बिछौना और अम्बर ओढ़ना” ही उनके वैराग्य का प्रतीक है।

तीर्थ स्थलों में रहते हैं नागा साधु

कई नागा साधु प्रमुख तीर्थ स्थलों जैसे प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में रहते हैं। वे धार्मिक यात्राओं में भाग लेते हैं और समाज से दूर रहकर साधना करते हैं। नागा साधु भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते हैं और आम लोगों से बहुत कम संवाद रखते हैं।

नागा साधुओं की कठोर साधना और वैराग्य

नागा साधु अपनी कठिन साधना और संयम के लिए प्रसिद्ध हैं। वे समाज के मोह-माया से दूर रहते हैं और भौतिक सुखों का त्याग कर देते हैं। उनकी साधना का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और ईश्वर से जुड़ना होता है।

क्यों होती है नागा साधुओं की दीक्षा कठिन?

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। उन्हें वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है, कठिन तपस्या करनी होती है और गुरु की अनुमति से ही उन्हें नागा साधु के रूप में स्वीकार किया जाता है। दीक्षा के समय उन्हें निर्वस्त्र होकर जीवन जीने की शपथ लेनी होती है, जिससे वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।

नागा साधु कुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होते हैं, लेकिन कुंभ समाप्त होते ही वे फिर से अपने कठोर तपस्वी जीवन में लौट जाते हैं। हिमालय की गुफाओं, तीर्थ स्थलों और घने जंगलों में रहकर वे कठोर साधना करते हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और आत्मज्ञान की मिसाल है, जो उन्हें साधारण मनुष्यों से अलग बनाता है।

 

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