Wednesday, April 2, 2025
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हार पर मंथन का मजा लीजिये…!

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Ranchi : भ्रम के भीष्म और द्धैत के द्रोणाचार्य बनकर झारखंड आये हिमंता-शिवराज प्रवासी नेता की तरह झारखंड आये और प्रदेश बीजेपी की भद्द पिटवाकर वापस चले गये…! कृष्ण की तरह हेमंत ने अश्वत्थामा हतो का नारा दिया और शिखंडी को हथियार बना कर एक तीर से दोनों का शिकार कर दिया। अब बीजेपी मंथन कर रही है…! मंथन हारे प्यादों के साथ किया जा रहा है। समीक्षा बैठक में चुनावी भीष्म और द्रोणाचार्य गायब हैं…!

शनिवार को बीजेपी प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत बाजपेयी, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री नागेन्द्र त्रिपाठी, संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह, प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र कुमार राय प्रदेश बीजेपी कार्यालय के हॉल में जब समीक्षा करने बैठे तो हॉल के बाहर ताला जड़ दिया गया! हार की समीक्षा करने बैठी भाजपा उन सवालों की तलाश में बैठी थी जिनके कारण झारखंड में उसकी हार हुई!

झारखंड में भाजपा की हार क्यों हुई…? बीजेपी की शाख को बट्टा क्यों लगा? क्यों कई नामचीन नेता चुनाव हार गये.? अब बीजेपी की रणनीति राज्य की राजनीति में क्या होगी? वैसे भी हार के बाद समीक्षाओं का दौर शुरू होता है…! कुछ नया नहीं है… भाजपा वही कर रही है जो हार के बाद के राजनीतिक दल किया करते हैं…! दो दिनों तक बीजेपी दफ्तर में हुई बैठक में केन्द्र के नेताओं के उपस्थिति में हार की समीक्षा करने बैठी भाजपा अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि पार्टी ने स्थानीय नेताओं को हाशिये पर रखने का गुनाह किया है…! तो आप मान लीजिये कि हिमंता-शिवराज की कूटनीतिक चाल के पक्ष में अभी भी यशगान गाये जा रहे हैं…। खामियों को तलाशने से ज्यादा हेमंत की रणनीतिक खूबियों पर ज्यादा चर्चा हो रही है! मंथन के बाद जो कुछ निकलकर सामने आया, उसमें मुख्य रूप से तीन बिन्दु हैं, जिन्हें हार का कारण माना जा रहा है। पहला कारण मंईयां योजना, जिसने राज्य की महिलाओं को इंडिया के पक्ष में गोलबंद करने में भूमिका निभाई। दूसरी वजह रही है कि राज्य में जयराम महतो की पार्टी JLKM के उदय और बीजेपी और आजसू के वोटरों का नई पार्टी की तरफ बढ़ता रुझान…! तीसरा महत्वपूर्ण जो कारण निकलकर आया वह बीजेपी के ही अन्दरुनी कलह है जिस कारण भाजपा राज्य के चुनावों में औंधे मुंह गिरी है! बीजेपी के नेता खामोशी से ही सही लेकिन यह स्वीकार कर चुके हैं कि कई और सीटें पार्टी के खाते में आ सकती थीं, अगर कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं की कद्र तात्कालीन चुनाव प्रभारी गंभीरता से करते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं..! हिमंता क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते रहे, बड़े चेहरों को किनारे लगा दिया। अुर्जन मुंडा जैसे कद्दावर नेता खामोश रहे तो संथाल में बाबूलाल मुरझाते नजर आये। कोल्हान के टाईगर चम्पाई भी करामाती तेवर दिखाने में फिसड्डी साबित हुए! सीता सोरेन को उनके घर से निकालकर जामताड़ा से टिकट दे दिया! दूसरी पार्टी से बीजेपी में जितने भी नेताओं की इंट्री हुई उनमें से चम्पाई को छोड़कर सभी हार गये…! चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष पर ईडी की दबिश लगातार हुई, जिस कारण जनता के बीच गलत मैसेज गया…!

जयराम महतो की पार्टी की वजह से कम से कम राज्य की 18 सीटें ऐसी थीं जिनपर एनडीए जीतते हुए भी हार गई! वहीं घुसपैठ के मुद्दे पर बीजेपी की रणनीति को संथाल के मतदाताओं ने नकार दिया! बीजेपी इस बात से खुश हो सकती है कि इसबार के चुनाव में वोटों का प्रतिशत उसके पक्ष में बढ़ा है, लेकिन यह भी तय है कि वोटों का बढ़ा प्रतिशत विधायकों की संख्या में इजाफा करने में नाकाम रहा है। अकेले आजसू की सात सीटें ऐसी थी जिनपर उसे जेएलकेएम की वजह से हार का सामना करना पड़ा। जेएलकेएम ने करीब 18 लाख वोटों की सेंधमारी की, जिस वजह से बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिन सीटों पर एनडीए के कैंडिडेट की हार हुई है, उन उनमें से कई सीटें ऐसी हैं जहां जेएलकेएम ने 30 से 70 हजार वोट हासिल किये हैं। वहीं भितरघात की बात की जाये तो बीजेपी पूरे चुनाव में बागियों को मैनेज करने लगी रही जबकि बागी बैकफुट पर आने को ज्यादातर तैयार नहीं थे।

बहरहाल मंथन का दौर चलता रहेगा..! हार की समीक्षा भी होनी चाहिये…! लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि क्या बीजेपी के आलाकमान ऐसे नेताओं को चुनाव प्रभारी बनाने से गुरेज करेंगे जिन्हें राज्य की न तो भौगोलिक स्थिति को समझते हैं और न ही यहां के क्षेत्रीय मुद्दों को समझने में अक्षम हैं। लिहाजा, भीष्म-द्रोणाचार्य से तो केन्द्रीय नेतृत्व बात कर लेगा लेकिन जो बीजेपी के कार्यकर्ताओं में फैले असंतोष की भरपाई कैसे होगी, इसके लिये बीजेपी को अलग से मंथन की जरूरत है ताकि अगले चुनाव में इसका दोहराव न हो।

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